हांलाकि मुझे ज्यादा समझ नहीं आता फ़िर भी चून्कि कहते है न कि एक तस्वीर सौ वाक्यों के समान होती है इसलिये चित्र देख्कर काफ़ी कुछ समझने का प्रयास करता रहता हू। और हमारी अध्यापिका महोदया भी अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करती हैं, जैसे कि हम लोग बहुत इटालिअन अब तक सीख चुके हैं इसलिये वे सारे आदेश भी इटालियन मे ही देती हैं।

मै तो यहा पिछले एक साल से हूं इस बीच जून २००५ मे लगभग १०-१२ दिन मै भी पहली बार इटालियन सीखने के प्रयास मे एक और कक्षा मे शामिल हुआ था, उसमे शुरुआत तो अच्छी हुई थी पर वो इस तरह की सप्ताह मे २ दिन २-२ घन्टे का न होकर प्रतिदि ५ घन्टे की थी और मै प्रतिदिन एक घन्टा ही निकाल पाता था इसलिये मैने जल्दी ही क्लास छोड दी थी, उसके बाद भारत लौटा था और दुबारा जाने पर कुछ खास जरूरत महसूस नही हुई तो सीखने का भूत भी उतर गया। अभी फ़िर से इसलिये चढा कि कुछ नये PhD छात्र आये है और उनके लिये विशेष रूप से ये कक्षायें आयोजित हो रही है तो मेरा भी मन ललचाया और मैने मालूम किया तो मुझे अनुमति भी मिल गयी।
और यही नही, हर हफ़्ते इटालियन समाज और सन्स्क्रिति को समझने और जानने के लिये आयोजित यात्राओं मे भी सम्मिलित होने की। और कुल मिलाकर मुझे मौका मिल रहा है द्रिश्यो को कैमरे मे कैद करने का वो न सबसे बडी बात है, एक और बात; मित्र भी बनाने का चाहे वो इटालियन प्रैक्टिस करने के लिये ही क्यो न हों।
1 comment:
मिश्र जी, आपने बचपन की याद दिला दी! मुझे नयी क़ितबोँ के पन्नों की महक भी बहुत अच्छी लगती थी...
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